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उधम सिंह भारत के स्वतंत्रता संग्राम के महान सेनानी एवं क्रन्तिकारी थे। इस ब्लॉग पोस्ट में आज हम शहीद उधम सिंह की जीवनी (Udham Singh Biography in hindi) के बारे में विस्तृत रूप से जानेंगे। उधम सिंह ने 1919 के जलियांवाला बाग हत्याकांड का अकेले ही बदला लेने के लिए भारतीय इतिहास में एक जाना पहचाना नाम है।
उन्होंने जलियावाला बाग कांड के समय पंजाब के गवर्नर जनरल रहे माइकल ओ’ डायर से जलियावाला बाग में हुए उस नरसंहार का बदला लेने के लिए लंदन में जाकर अंग्रेजों के घर में घुसकर माइकल ओ’ डायर को गोली मारी थी। उधम सिंह का असली नाम शेर सिंह था। यह नाम से ही नही बल्कि असली शेर थे। अपनी छोटी सी 20 वर्ष की आयु में इन्होने संकल्प ले लिया था की वह इस नरसंहार के प्रमुख जिम्मेदार व्यक्तियों से बदला लेंगे।
उधम सिंह का जन्म एवं प्रारम्भिक जीवन परिचय
उधम सिंह का जन्म 26 दिसम्बर 1899 को पंजाब प्रान्त के संगरूर जिले के सुनाम गाँव में एक सिख परिवार में हुआ था। उधम सिंह का असली नाम शेर सिंह था। एवं उनके पिता का नाम टहल सिंह था। उधम सिंह के पिता टहल सिंह एक किसान थे । एवं खेती-किसानी के अलावां उपल्ली नामक गाँव में रेलवे क्रासिंग में चौकीदारी का काम करते थे।
उधम सिंह पर बचपन में ही मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा था। क्योंकि जब वे जब वे बहुत छोटे थे, तभी उनके माता-पिता की मृत्यु हो गयी थी। सन 1901 में उधम सिंह की माता एवं 1907 में पिता का निधन हो गया था।
जिसके पश्चात उन्हें अपने बड़े भाई मुक्ता सिंह के साथ सेन्ट्रल खालसा अनाथालय में रहना पड़ा था। अमृतसर का सेन्ट्रल खालसा अनाथालय में इनका नाम बदलकर उधम सिंह एवं साधू सिंह रख दिया गया। अनाथालय में उधम सिंह की जिन्दगी चल ही रही थी कि 1917 में उनके बड़े भाई का देहांत हो गया। वह पूरी तरह से अनाथ हो गये।
वर्ष 1918 में अपनी हाईस्कूल की परीक्षा पास करने के पश्चात उन्होंने अनाथालय छोड़ दिया था। वहां रहते हुए उधम सिंह ने आर्ट्स एवं क्राफ्ट्स में अच्छी योग्यता प्राप्त कर ली थी। यह वह दौर था जब भारत में अंग्रेजों की गलत नीतियों के कारण उनके विरुद्ध लोगों के मन में गुस्सा बढता जा रहा था।
उधम सिंह देश की स्थिति को देख रहे थे। और देश में अंग्रेजों के अत्याचार से क्रोधित थे। इसी दौरान एक इस प्रकार की घटना घटी जिसने उधम सिंह के जीवन को नयी दिशा प्रदान की।
जलियावाला बाग हत्याकांड ने बनाया भरा जूनून
अंग्रेज 1919 में रौलेट एक्ट नाम का एक कानून लेकर आये थे । इस एक्ट का सरकारी नाम तो “अराजक एवं क्रन्तिकारी अपराध अधिनियम -1919” था। परन्तु भारत के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने इस एक्ट को “काला कानून” कहा , क्योंकि इस कानून के अंतर्गत ब्रिटिश सरकार किसी को भी बिना मुकदमा चलाये जेल में बंद कर सकती थी।
इस एक्ट के द्वारा राजनैतिक कैदियों को 2 वर्षों तक बिना ट्रायल के जेल में रखे जाने जैसे बहुत से नियम लागु किये गये। इस कानून के तहत मजदूर संगठन अपने हक़ के लिए आवाज नही उठा सकते थे। और ब्रिटिश सरकार सिर्फ शक के आधार पर किसी को भी गिरफ्तार कर सकती थी।
इस कानून का पुरे देश में विरोध होने लगा। इस कानून के विरोध में पंजाब में जगह-जगह पर जनसभा होने लगी। कांग्रेस के 2 नेता सैफुद्दीन मिचलु एवं सत्यपाल को इस कानून के अंतर्गत गिरफ्तार कर लिया गया । जिसके पश्चात लोगों में काफी आक्रोश फ़ैल गया।
जलियावाला बाग कांड का विवरण
इन नेताओं की गिरफ़्तारी के विरोध में अमृतसर के जलियावाला बाग में दिनांक 13.04.1919 को बैसाखी के दिन एक जनसभा आयोजित की गयी। इस जनसभा में हजारों लोग शांतिपूर्वक ढंग से सरकार की नीतियों का विरोध कर रहे थे। जिसमे कुछ नेता भाषण देने वाले थे। शहर में कर्फ्यू लगा हुआ था, फिर भी इसमें सैकड़ो लोग इस तरह के भी थे, जो बैसाखी के पर्व पर परिवार के साथ मेला देखने एवं शहर घुमने आये थे, एवं सभा की खबर सुन कर वहां चले गये थे।
जब नेता बाग में पड़ी रोडियों के ढेर पर खड़े होकर भाषण दे रहे थे। उसी दौरान ब्रिगेडियर जनरल रेजिनाल्ड डायर 90 ब्रिटिश सैनिकों को लेकर वहां आया। उन सब के हाथों में भरी हुई राइफलें थीं। उन लोगों ने बाग को घेर लिया। उस बाग से निकलने का एक ही मार्ग था, जिस पर डायर के हथियार से लैस सैनिक खड़े थे। नेताओं ने सैनिकों को देखा, तो उन्होंने वहां उपस्थित लोगों से शांत बैठे रहने की अपील की।

गोलीबारी कांड
सैनिकों ने बाग को घेर कर बिना कोई चेतावनी दिए निहत्थे, असहाय लोगों पर गोलियां बरसानी प्रारंभ कर दीं। 10 मिनट में कुल 1650 राउंड गोलियां चलायी गयीं। भागने का कोई मार्ग नही था। कुछ लोग जान बचाने के लिए मैदान में स्थित एक कुएं में कूद गये। जिस पर कुछ ही पलों में कुआं लाशों से भर गया।
मृतकों एवं घायलों की संख्या
जलियावाला बाग कांड में स्थापित सूची पट्टिका पर लिखा है कि, 120 लाशें तो केवल कुएं से ही बरामद हुईं। शहर में कर्फ्यू लगा होने के कारण घायलों को उपचार के लिए भी कहीं नहीं ले जाया जा सका, जिससे लोगों ने तड़फ-तड़फ कर दम तोड़ दिया। अमृतसर के उपायुक्त कार्यालय में 484 शहीदों की लिस्ट है, जबकि जलियावाला बाग में कुल 388 शहीदों की लिस्ट है।
ब्रिटिश राज के अभिलेख इस वारदात में 200 लोगों के घायल होने एवं 379 लोगों के शहीद होने की बात स्वीकार करते हैं। जिनमे से 337 पुरुष, 41 नाबालिक लड़के एवं एक 6 हफ्ते का बच्चा था। आनुमानित आकड़ों के अनुसार, 1 हजार से ज्यादा लोग शहीद हुए एवं 2 हजार से ज्यादा घायल हुए। अधिकारिक रूप से मरने वालों की तादात 1800 से ज्यादा थी। स्वामी श्रद्धानन्द के अनुसार, मृतकों की संख्या 15 सौ से ज्यादा थी। जबकि पंडित मदन मोहन मालवीय के अनुसार , कम से कम 13 सौ लोग मारे गये।
माइकल ओ’ डायर की गोली मारकर हत्या की
13 अप्रैल 1919 को हुए जलियावाला बाग कांड के उधम सिंह प्रत्यक्षदर्शी थे। जलियावाला बाग कांड में मारे गये लोगों की सही संख्या राजनीतिक वजहों से कभी पता नही चल पायीं। इस वारदात से उधम सिंह काफी आक्रोशित हो गये एवं उन्होंने जलियावाला बाग की मिटटी हाथ में लेकर माइकल ओ’ डायर को सबक सिखाने की कसम खायी।
अपने इस उद्देश्य को पूर्ण करने हेतु उधम सिंह ने अनेकों नामों से अफ्रीका,ब्राजील ,नैरोबी एवं अमेरिका की यात्रा की। उधम सिंह वर्ष 1934 में लंदन पहुंचे। एवं वहां 9, एल्डर स्ट्रीट कमर्शियल रोड पर रहने लगे। वहां उन्होंने अपने उद्देश्य को पूर्ण करने हेतु 6 गोलियों वाली रिवाल्वर खरीदी एवं यात्रा के उद्देश्य से एक कार भी खरीद ली। भारत देश के बहादुर उधम सिंह माइकल ओ’ डायर की हत्या करने के लिए उचित समय का इंतजार करने लगे।
21 वर्षों बाद लिया प्रतिशोध
वर्ष 1940 में उधम सिंह को अपने सैकड़ों भाई-बहनों की मौत का प्रतिशोध लेने का अवसर प्राप्त हुआ। रायल सेन्ट्रल एशियन सोसायटी को लंदन के काक्सटन हाल में जलियावाला बाग हत्याकांड में 21 वर्ष बाद 13 मार्च 1940 को बैठक थी। जहाँ माइकल ओ’ डायर भी वक्ताओं में से एक था। उस दिन उधम सिंह समय से ही बैठक में पहुँच गये। उन्होंने एक मोटी किताब में अपनी रिवाल्वर छिपा ली। उन्होंने इसके लिए किताब के पन्नों को रिवाल्वर के आकार में इस तरह से काटा था, जिससे रिवाल्वर आसानी से छिपाया जा सके।
बैठक के पश्चात दीवार के पीछे से पोजीशन लेते हुए उधम सिंह ने माइकल ओ’ डायर पर गोलियां बरसा दीं। माइकल ओ’ डायर को 2 गोली लगी जिससे उसकी तत्काल मौत हो गयी। उधम सिंह ने वहां से भागने का प्रयास नही किया, और स्वयं को गिरफ्तार करवा दिया। उन पर मुकदमा चला जिसके पश्चात उधम सिंह को 4 जून 1940 को हत्या का दोषी ठहराया गया, एवं 31 जुलाई 1940 को उन्हें पेंटनविले जेल में फांसी दे दी गयी।
अधिकतर लोग यह समझते हैं कि, उधम सिंह ने जलियावाला बाग में मौजूद जनरल डायर की हत्या की थी। जबकि उधम सिंह ने उसे नही बल्कि माइकल ओ’ डायर की हत्या की थी। जो की उस वक़्त पंजाब का गवर्नर था। माइकल ओ’ डायर ने जनरल डायर के इस कार्य को सही ठहराया था उधम सिंह उसे भी जलियावाला बाग का दोषी मानते थे।
इसी कारण उन्होंने लंदन जाकर माइकल ओ’ डायर को गोली मारी थी , न की जनरल डायर को। जनरल डायर की मृत्यु तो 1927 में ब्रेन हेमरेज के कारण पूर्व में ही हो गयी थी। उधम सिंह जनरल डायर को भी मारना चाहते थे, लेकिन तब तक वो लंदन नही पहुँच पाए थे।
उधम सिंह ने जिस तरह अंग्रेजों के घर में घुस कर देश के हजारों लोगों की मौत का प्रतिशोध लिया, इसकी तारीफ प्रत्येक व्यक्ति ने की थी। जवाहर लाल नेहरु ने भी कहा था कि, उन्हें माइकल ओ’ डायर की हत्या का अफ़सोस है, परन्तु ये बहुत आवश्यक भी था।
माइकल ओ’ डायर की हत्या के लिए उधम सिंह का स्पष्टीकरण एवं मुक़दमे के दौरान दिए गये उनके विवादास्प्रद अदालती बयान उनकी मृत्यु के सालों बाद लोकप्रिय हुआ, जब दस्तावेज पुनः सामने आये। उधम सिंह ने अपने आखिरी भाषण में कहा था -: “मैंने ऐसा इसलिए किया क्योकि माइकल ओ’ डायर इसी का हक़दार था। वह भारतीयों की आत्मा को ख़त्म करना चाहता था।
मै मृत्यु से भयभीत नही हूँ , मै अपने देश के लिए मर रहा हूँ, मौत की सजा की परवाह मत करो। मै एक देश के लिए मर रहा हूँ। हम ब्रिटिश साम्राज्य से पीड़ित हैं। मुझे मुक्त होने के लिए मरने पर गर्व है। मेरी जन्म भूमि एवं मुझे भरोसा है कि, जब मै नही रहूँगा तब मेरे जगह पर मेरे हजारों देशवासी आयेंगे। एवं तुम्हारे ब्रिटिश साम्राज्य को समाप्त कर देंगे। मै अंग्रेजों के विरुद्ध नही हूँ। इंग्लैंड के मजदूरों के साथ मेरी काफी सहानभूति है। मै साम्राज्यवादी सरकार के विरुद्ध हूँ। ब्रिटिश साम्राज्य वाद सरकार के साथ नीचे”।
उधम सिंह के अवशेष भारत आये
लंदन में जुलाई 1974 को दफनाये जाने के लगभग 35 सालों बाद उधम सिंह के अवशेषों को पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री ज्ञानी जैल सिंह द्वारा की गयी एक याचिका के पश्चात भारत में वापस लाया गया था। कथित रूप से सीएम ने तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी से तत्कालीन ब्रिटिश सरकार से उनके लिए अनुरोध करने की अपील की थी।
उधम सिंह का अवशेष भारत पहुँचने के पश्चात एक शहीद के तौर पर स्वागत किया गया। एवं उनके पार्थिव शरीर को पंजाब में उनके गाँव सुनाम ले जाया गया। जहाँ उनका अंतिम संस्कार किया गया।
कथित तौर पर उधम सिंह का अंतिम संस्कार 2 अगस्त 1974 को एक ब्राह्मण पंडित द्वारा किया गया था। उनकी राख को अलग-अलग कलशों में रखा गया। एक-एक कलश को 3 धर्मों- हिन्दू , मुस्लिम, सिख के पवित्र स्थानों में दफनाया गया, एवं एक कलश की राख गंगा नदी में विसर्जित की गयी। जबकि एक कलश स्वतंत्रता सेनानी को श्रद्धांजली के रूप में जलियावाला बाग, अमृतसर में रखा गया है।

सारांश- Udham Singh Biography in hindi
उधम सिंह देश के महान क्रांतिकारियों में से एक थे। Udham Singh Biography in hindi को पढ़ने से हमें यह पता लगता है देश के प्रति उनके दिल में कितना प्यार था। “जब तक धरती चांद रहेगा उधम सिंह का नाम रहेगा”। हमे उधम सिंह की जीवनी को अपने समाज और बच्चों के बीच प्रचार-प्रसार करना चाहिए।