भारत के केरल राज्य के तिरुवनंतपुरम में स्थित भगवान् विष्णु का एक प्रसिद्ध हिन्दू मंदिर है, जिसका नाम श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर है। यह ऐतिहासिक मंदिर भारत के प्रमुख वैष्णव मंदिरों में शामिल तिरुवनंतपुरम के अनेक पर्यटन स्थलों में से एक है। श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर विष्णु भक्तों का विशेष आराधना स्थल है। यह मंदिर केरल और द्रविड़ वास्तुशिल्प का अलौकिक उदाहरण है।
इसे दुनिया का सबसे अमीर मंदिर कहा जाता है। श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर का इतिहास 8 वीं सदी से मिलता है। यह भगवान् विष्णु के 108 पवित्र मंदिरों में से एक है। जिसे भारत का दिव्य देसम भी कहते हैं। दिव्य देसम भगवान् विष्णु का सबसे पवित्र निवास स्थल है। जिसका उल्लेख तमिल संतों द्वारा लिखे गए पांडुलिपियों मिलता है।यह दिव्य मंदिर भारत के उन गिने-चुने मंदिरों में से एक है, जहां केवल हिन्दू धर्म के लोग ही प्रवेश कर सकते हैं। इस मंदिर के प्रमुख देवता भगवान् विष्णु जी हैं, जो शेषनाग पर शयन मुद्रा में विराजमान हैं। ये प्रतिमा लगभग 18 फुट लम्बी है।
श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर का इतिहास
आपको बता दें कि, श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर का इतिहास 8 वीं शताब्दी का है। भारत में 108 पवित्र विष्णु मंदिरों या दिव्य देशमों में से एक है। त्रावणकोर राजाओं के बीच विख्यात मार्तंड वर्मा ने इस मंदिर का एक बड़ा जीर्णोद्धार कराया। जिसके बाद परिणामस्वरूप वर्तमान समय में श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर के रूप में विख्यात है। मार्तंड वर्मा ने ही इस मंदिर में मुरजपम और भाद्र दीपम त्यौहारों की शुरुआत की। मुरजपम का अर्थ प्रार्थनाओं का मंत्रोच्चारण करना होता है।
आज भी यह त्यौहार मंदिर में हर 6 वर्ष में एक बार आयोजित किया जाता है। वर्ष 1750 में मार्तंड वर्मा ने त्रावणकोर राज्य को भगवान् पद्मनाभ को समर्पित किया। मार्तंड वर्मा ने यह घोषणा की कि, राजघराना प्रभु की तरफ से राज्य पर शासन करेगा। एवं वे स्वयं और उसके वंशज राज्य की सेवा भगवान पद्मनाभ के सेवक या दास के रूप में करेंगे। तब से त्रावणकोर के प्रत्येक राजा के नाम से पूर्व पद्मनाभ दास पुकारा जाता है। त्रावणकोर राजा द्वारा पद्मनाभस्वामी को दिये गये दान को त्रिपड़ीदानम कहा जाता है।
केरल की राजधानी तिरुवनंतपुरम में स्थित इस मंदिर में भगवान विष्णु की विशाल 18 लम्बी प्रतिमा विराजमान है। इस प्रतिमा में भगवान् विष्णु शेषनाग पर शयन मुद्रा में विराजमान हैं। जिसे देखने के लिए हजारों भक्त दूर-दूर से यहां आते हैं। कहा जाता है कि, तिरुवनंतपुरम नाम भगवान् विष्णु के अंनत नामक नाग के नाम पर ही रखा गया है।
तिरुवनंतपुरम का शाब्दिक अर्थ है- श्री अनंत पद्मनाभस्वामी की भूमि। यहां पर भगवान् विष्णु की विश्राम अवस्था को पद्मनाभ कहा जाता है। एवं इस रूप में विराजमान भगवान् यहां पर पद्मनाभस्वामी के नाम से प्रसिद्ध है। श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर का उल्लेख कई पवित्र ग्रंथों जैसे- स्कंद पुराण, पद्म पुराण, ब्रह्म पुराण में मिलता है। इस मंदिर में एक 100 फुट लंबा (अलौकिक प्रवेश द्वार) है। इस मंदिर को 7 परशुराम क्षत्रों में से एक माना जाता है। यह मंदिर पवित्र टंकी पद्मतीर्थम यानी कमल जल के निकट स्थित है।
श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर के तीर्थस्थल
श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर के भीतर भगवान पद्मनाभ ( भगवान् विष्णु ) की लगभग 18 फिट लंबी प्रतिमा विराजमान है। इस प्रतिमा में भगवान् विष्णु शेषनाग पर शयन मुद्रा में विराजमान हैं। यह मूर्ति 12,008 शालिग्राम से निर्मित है। जिन्हें नेपाल की नदी गंधकी के किनारों से लाया गया था।
श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर का गर्भगृह एक चट्टान पर स्थित है। और मुख्य प्रतिमा जो लगभग 18 फीट लंबी है, को अलग अलग दरवाजों से देखा जा सकता है। पहले दरवाजे से सर और सीना देखा जा सकता है, जबकि दूसरे दरवाजे से भगवान् की नाभि से खिले हुए कमल को, और तीसरे दरवाजे से पैर देखा जा सकता है।
आपको मंदिर के कई हिस्से में दीवारों पर भगवान् शिव की छवियाँ सजी हुई दिखाई देंगी। भगवान् पद्मनाभ के मंदिर के साथ मंदिर परिसर में कई अन्य देवताओं के भी मंदिर हैं। आपको नरसिम्हा (एक अंश शेर और एक अंश पुरुष) जो भगवान् विष्णु जी के अवतार हैं, का एक मंदिर मिलेगा।
इस मंदिर का ध्वज स्तंभ लगभग 80 फिट ऊंचा है। जिसे स्वर्ण लेपित तांबे की चादरों से ढका गया है। यहां पर पार्थसारथी के सम्मान में एक और विशेष मंदिर का निर्माण किया गया है। यह मंदिर सारथी की भूमिका में भगवान् श्री कृष्ण का है। भगवान् श्री कृष्ण स्वयं भगवान् विष्णु के अवतार हैं।
इसके अतिरिक्त पद्मनाभस्वामी मंदिर में भगवान् गणेश, भगवान् राम, सीता, लक्ष्मण और हनुमान सहित अन्य मंदिर भी हैं। मंदिर परिसर में एक अलग तिरुवंबदी श्री कृष्ण स्वामी मंदिर भी है। एक और ढांचा जो आपका ध्यान आकर्षित करेगा वह नवग्रह मंडपा है। जिसकी छत पर नवग्रह दिखाई देंगे।
श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर की अन्य विशेषताएं
श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर केरल में पवित्र तीर्थस्थलों के अतिरिक्त कुछ अन्य विशेषताएं इस प्रकार है, जिनका वर्णन इस प्रकार है।
ध्वज स्तंभ
पूर्वी गलियारे के पास 80 फिट ऊंचा ध्वज स्तंभ है। यह सागौन की लकड़ी से निर्मित है। जिसे स्वर्ण लेपित तांबे की चादरों से ढका गया है। ध्वज दंड के शीर्ष पर गरुड़ स्वामी की आकृति है। जो पवित्र पक्षी हैं। जिसे भगवान् अपने वाहन के रूप में इस्तेमाल करते थे। यह आकृति घुटने टेकने की मुद्रा में है।
गोपुरम
श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर में 9 प्रवेश द्वार हैं। जो मानव शरीर के 9 छिद्रों को दर्शाते हैं। वहीँ पूर्वी प्रवेश द्वार पर 7 मंजिल ऊंचा गोपुरम बना हुआ है। 100 फुट ऊँचे इस प्रवेश द्वार का निर्माण दक्षिण भारत के मंदिरों में लोकप्रिय शैली में किया गया है। इस गोपुरम पर भगवान् विष्णु के 10 अवतारों को दर्शाया गया है। पर शीर्ष पर आपको 7 सुनहरे गुंबद नजर आएंगे।
ओट्टकक्ल मंडपम
यह भगवान् पद्मनाभ के गर्भगृह के सामने एक एकल पत्थर का मंच है। यह ग्रेनाइट से बना 20 वर्ग फुट का मंच है। जो ढाई फुट मोटा है। भगवान् के दर्शन करने के लिए आपको मंच पर चढ़ना होगा। ओट्टकक्ल मंडपम का उपयोग श्री पद्मनाभस्वामी जी का अभिषेक करने के लिए किया जाता है।
कुलशेखर मंडपम
कुलशेखर मंडपम पत्थर से निर्मित एक और वास्तुशिल्प चमत्कार है। यह संरचना 28 स्तंभों पर आधारित है। जिनमें से प्रत्येक को नक्काशीदार आकृतियों से सजाया गया है। जब आप उन पर स्पर्श करते हैं, तो खंबे अलग-अलग स्वर उत्पन्न करते हैं। इस मंडप को आयिरमकाल या सप्तस्वर मंडपम के नाम से भी जाना जाता है।
अभिश्रवण मंडपम
यह मंदिर परिसर के अंदर उपस्थित पत्थर की एक संरचना है। अभिश्रवण मंडपम ओट्टकक्ल मंडपम के सामने है। और इसका उपयोग मंदिर में विभिन त्यौहारों के दौरान विशेष पूजा के समय किया जाता है। भक्त इस मंडप का उपयोग भगवान् की आराधना एवं ध्यान के लिए करते हैं।
श्रीबलीपुरा
इस मंदिर के पूर्वी भाग से लेकर गर्भगृह तक पत्थर से निर्मित एक विशाल आयातकार गलियारा है, जिसे श्रीबलीपुरा कहा जाता है। इसमें 365 एक तिहाई कला शिल्प वाले ग्रेनाइट पत्थर के खंबे हैं। जिनमें सुंदर नक्काशी की गयी है। पूरब की तरफ मुख्य प्रवेश द्वार के नीचे भूतल है। जिसे नाट्यशाला कहा जाता है। जहां मलयालम महीने मीनम और तुलम के दौरान आयोजित वार्षिक 10 दिवसीय त्यौहार में केरल के शास्त्रीय कला रूप- कथकली का प्रदर्शन किया जाता है।अभिलेखों के अनुसार, मंदिरों के मुख्य मंदिरों को घेरने वाले इस पत्थर के गलियारे को बनाने के लिए 4 हजार कारीगरों, 6 हजार मजदूरों एवं 100 हाथियों ने काफी मेहनत की थी।
श्री पद्मनाभस्वामी मदिर की घड़ी
यह एक खूबसूरत प्राचीन घड़ी है, जो पद्मनाभस्वामी मंदिर में प्रवेश द्वार के ठीक सामने स्थित है।
श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर का तालाब
श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर के पूर्वी भाग में एक पवित्र तालाब है, यह राज्य के अनेक पवित्र जल निकायों एवं शहर के सबसे पुराने तालाबों में से एक है। मंदिर परिसर के 8 मंडप पद्मतीर्थम तालाब में है।
भित्ति चित्र
श्री पद्मनाभ एवं श्री कृष्ण के मंदिरों की बाहरी दीवारों सहित मंदिर की दीवारों पर अनेक भित्ति चित्र हैं। और मुख्य गर्भगृह के पीछे स्थित अनंतशयनम भित्ति चित्र को केरल के मंदिर भित्त चित्रों में सबसे बड़ा माना गया है। यह 18 फिट लंबा है।
श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर में पूजा करने का समय
श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर में पूजा करने का समय इस प्रकार है।
प्रातः निर्माल्य दर्शन
- 03:30 बजे से 04:45 बजे तक
- 06:30 बजे से 07:00 बजे तक
- 08:30 बजे से 10:00 बजे तक
- 10:30 बजे से 11:10 बजे तक
- 11:45 बजे से 12:00 बजे तक
सायंकाल दर्शन
- 05:00 बजे से 06:15 बजे तक
- 06:45 बजे से 07:20 बजे तक
नोट -त्यौहारों के समय मंदिर में पूजा करने के समय बदलते रहते हैं।
मंदिर में कपडे पहनने का नियम
मंदिर में सिर्फ हिन्दू धर्म के लोग ही प्रवेश कर सकते हैं। इस मंदिर में कपड़े पहनने के कड़े नियम हैं। जिसका पालन मंदिर में प्रवेश करते समय करना होता है। ये नियम इस प्रकार हैं।
पुरुषों के लिए नियम
श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर में प्रवेश करते समय पुरुषों को कुंडु या धोती ( जो कमर में पहना जाता है, और नीचे एड़ी तक जाता है ) और किसी भी तरह की कमीज या शर्ट पहने की अनुमति नहीं है।
स्त्रियों के लिए नियम
स्त्रियों को साडी, मुंड़ुम नेरियतुम (सेट-मुंडु ), स्कर्ट एवं ब्लाउज या आधी साड़ी पहनना होता है। मंदिर के प्रवेश द्वार पर किराए पर धोती उपलब्ध रहती है। आजकल मंदिर के अधिकारी भक्तों की सुविधा को ध्यान में रखकर पैंट या सलवार सूट के ऊपर धोती पहनने की अनुमति दे रहे हैं।
श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर में प्रवेश फ़ीस एवं पूजा फ़ीस
मंदिर में प्रवेश करने के लिए कोई फ़ीस नहीं ली जाती है। मंदिर में आप आराम से प्रवेश कर सकते हैं। दर्शन करने के लिए लाइन में खड़े हो सकते हैं। और भगवान् के दर्शन का इन्तजार कर सकते हैं। परन्तु अगर लाइन लंबी है, और आप लंबे इन्तजार से बचना चाहते हैं, तो आप काउंटर पर विशेष पद्मनाभस्वामी मंदिर दर्शन टिकट खरीद सकते हैं।
यदि आप विशेष दर्शन के लिए भुगतान करते हैं, तो आप सामान्य कतार में लगे लोगों की अपेक्षा पहले गर्भ-गृह में प्रवेश कर सकते हैं। श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर में वीआईपी दर्शन की फ़ीस 150/- रूपये और प्रसाद के साथ 180/- रूपये है। पूजा की थाली के साथ 250/- रूपये में 2 लोगों के लिए प्रवेश उपलब्ध है। बच्चों का प्रवेश निःशुल्क है।
मंदिर में अनेक पूजन अनुष्ठान भी होते हैं। जिनमें आप पहले से बुकिंग कराकर सम्मिलित हो सकते हैं। इसके लिए बुकिंग कराकर सम्मिलित होने की फ़ीस इस प्रकार है।
निर्मलयम से उषा पूजा
प्रातः 3:30 बजे से प्रातः 05:30 बजे तक (इसकी फ़ीस 4 हजार रूपये है)
निर्मलयम से पंथिरादि
प्रातः 03:30 बजे से प्रातः 06:00 बजे तक ( इसकी फ़ीस 5 हजार रूपये है)
आधे दिन उच्च पूजा तक
इसकी फ़ीस 12 हजार रूपये है।
आपको यहां खरीदने के लिए उन्नीयप्पम, अरावना एवं पायसम जैसी अनेकों पेशकरों भी उपलब्ध हैं। इन्हें भी पद्मनाभस्वामी, श्री नरसिम्हा स्वामी, श्री कृष्ण स्वामी एवं मंदिर परिसर में अन्य देवताओं को अर्पित किया जा सकता है।
श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर में मनाये जाने वाले त्यौहार
श्री पद्मनाभस्वामी के जन्म दिन को मंदिर में थिरुवोनम के त्यौहार के रूप में काफी हर्षोलास के साथ मनाया जाता है। इस दौरान कई पीढ़ियों द्वारा पहले पूर्वजों द्वारा निर्धारित किये गए पारंपरिक आरती एवं रीति-रिवाजों के साथ पूजा की जाती है।
श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर में थुलम और मीनम के त्यौहार को वर्ष में 2 बार मनाया जाता है। बता दें कि, यह एक 10 दिवसीय त्यौहार है। जिसे श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर में मनाया जाता है। इस उत्सव पर परंपरागत रूप से मूर्तियों को ले जाने के लिए हाथियों का उपयोग किया जाता था। परन्तु अब इस अनुष्ठान को बंद कर दिया गया है।
लक्ष्मी दीपक यहां मनाया जाने वाला एक ऐसा त्यौहार है, जिसमें कई हजारों दीपों को जलाकर मनाया जाता है। इस दौरान मंदिर का नजारा काफी आकर्षक एवं हर किसी को मंत्रमुग्ध कर देने वाला होता है।
श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर की यात्रा का सबसे उपयुक्त समय
अगर आप श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर की यात्रा करने की योजना बना रहे हैं, तो आपको बता दें कि, यहां त्रिवेंद्रम की यात्रा के लिए अक्टूबर से फरवरी का समय सबसे अच्छा है। क्योंकि सर्दियों का मौसम काफी अच्छा होता है। जो पुरे वर्ष में यात्रा करने के लिए सबसे उपयुक्त समय है। गर्मीं के मौसम में यहां पर अत्यधिक गर्मीं पड़ती है। और मानसून अपेक्षाकृत ठंडा होता है।
कैसे पहुंचें श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर
श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर भारत के सभी प्रमुख शहरों से सड़क, रेल और हवाई मार्ग से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। अगर आप ट्रेन से सफर कर वहां जाना चाहते हैं, तो बता दें कि, तिरुवनंतपुरम सेन्ट्रल रेलवे स्टेशन श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर से लगभग 600 मीटर की दुरी पर स्थित है। इसके अतिरिक्त कोच्चिवेली रेलवे स्टेशन से यात्रा करने का विकल्प चुन सकते हैं। जो सड़क मार्ग से करीब 17 मिनट की दुरी पर है। विजहिंजम बस स्टेशन मंदिर के लिए निकटतम बस स्टॉप है, एवं सड़क मार्ग से सिर्फ 16 किमी दूर है।
मंदिर की हवाई मार्ग से यात्रा करने वालों के लिए त्रिवेंद्रम का अपना एयरपोर्ट है। जो दोनों घरेलु एवं अंतर्राष्ट्रीय एयरपोर्ट से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। मंदिर तक पहुँचने के लिए आप त्रिवेंद्रम में एयरपोर्ट से टैक्सी किराए पर ले सकते हैं। शहर में यात्रा करने के लिए आप किराए पर टैक्सी या आटोरिक्शा से यात्रा कर सकते हैं।
श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर का रहस्य
श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर देश के प्रमुख तीर्थ स्थलों में से एक होने के साथ ही काफी रहस्यमयी भी है। पुरे विश्व में श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर अपने भीतर समेटे रहस्य की वजह से भी जाना जाता है। इस मंदिर को जहां एक और दुनिया का सबसे अमीर मंदिर कहा जाता है, वहीं यहां के दरवाजे अपने साथ कई रहस्यों को छिपाये हुए हैं।
इस मंदिर को भारत के सबसे बड़े रहस्यमयी और अकूत खजाने वाले मंदिर के रूप में जाना जाता है। भगवान् विष्णु को समर्पित इस मंदिर में 7 गुप्त तहख़ाने हैं। और हर तहख़ाने से जुड़ा हुआ एक दरवाजा है। सेवानिवृत आईपीएस अधिकारी टी पी सुन्दर राजन ने मंदिर में अकूत खजाने का खुलासा करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की थी। जिस पर सुनवाई करते हुए वर्ष 2011 में सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में इन गुप्त तहखानों को वाल्ट ए, बी, सी, डी, ई, एफ और वाल्ट जी नाम देते हुए इनमें से 6 तहखाने खोले जा चुके हैं। जिनमें बहुत सा धन, हीरे-जवाहरात, सोने-चांदी, पन्ना इत्यादि मिले हैं। जिनकी कीमत लगभग 1 लाख 32 हजार करोड़ से भी अधिक की आंकी गयी है। जो मंदिर ट्रस्ट की देखरेख में रखवा दिए गए हैं।
इसमें एक तहखाना वाल्ट बी जिसे निलावटस या कॉलरा कहा गया। वो खुल ही नहीं पाया। ऐसा माना जाता है कि, जो भी इस दरवाजे को खोलने का प्रयास करेगा, वो अपने दुर्भाग्य को दावत देगा।
श्री पद्मनाभस्वामी के सातवें दरवाजे का क्या है रहस्य
मंदिर का 7 वां दरवाजा वाल्ट बी अभी तक अपने आप में एक रहस्य बना हुआ है। कहा जाता है कि, वाल्ट बी की रक्षा नागों द्वारा की जाती है। ऐसी मान्यता है कि, लोककथाओं वाला शैतान जिसका नाम कांजीरोट्ट यक्षी था। अन्य दिव्यमान देवताओं के साथ इसकी रक्षा करते हैं। ऐसा कहा जाता है कि, जो कोई भी इस दरवाजे को खोलने का प्रयास करता है, वह अपने दुर्भाग्य को आमंत्रित करता है।
इस बात पर पहले शायद किसी को यकीन न हुआ हो, परन्तु सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल करने वाले अधिकारी ने जब इसे खुलवाने का प्रयास किया था, तो कुछ सप्ताह बाद ही उनकी मृत्यु हो गयी थी। कहा जाता है कि, दरवाजे के शाप के कारण ही उनकी मृत्यु हुई। इस वजह से यह बात सत्य मानी जाने लगी।
इतिहासकार और सैलानी एमिली हैच ने अपनी किताब Travancore-A guide for the visitor में इस मंदिर के दरवाजे से जुडी कुछ बाते लिखी हैं। उन्होंने लिखा है कि, वर्ष 1931 में इस दरवाजे को खोलने का प्रयास किया जा रहा था, तब हजारों नागों ने मंदिर के तहखानों को घेर लिया। और उनके काटने से ऐसा प्रयास करने वालों की मृत्यु हो गयी। इससे पहले वर्ष 1908 में भी ऐसा हो चुका है। इसके बाद ये सवाल भी उठे कि, जमीन के अंदर क्या ये रक्षक नाग सर्प सदियों से रह रहे थे, जो अचानक सक्रीय हो गए, या कोई गुप्त स्थान है, जहां ये नाग सर्प रहते हैं।
क्या है रहस्यमयी दरवाजे की विशेषता
ये बोल्ट बी नामक तहखाने का दरवाजा लकड़ी का बना हुआ है। इसे खोलने या बंद करने के लिए कोई साकल, नट- बोल्ट, जंजीर या ताला नहीं है। ये दरवाजा किस तरह से बंद है, ये वैज्ञानिकों के लिए भी अभी तक एक रहस्य है। मान्यता है कि, सदियों पूर्व इस दरवाजे को कुछ विशेष मन्त्रों के उच्चारण से बंद किया गया था। और अब इसे कोई भी नहीं खोल सकता है।
दरवाजे पर 2 सापों की आकृति बनी हुई है। जिसके बारे में विषेशज्ञों का कहना है कि, इसे नागपाश जैसे किसी मंत्र से बांधा गया होगा। और अब गरुड़ मंत्र के उच्चारण से ही इसे खोला जा सकता है। परन्तु ये भी कहा जाता है कि, ये मंत्र इतना कठिन है कि, इनके उच्चारण या विधि में थोड़ी सी भी गलती से जान भी जा सकती है, या कोई बड़ी दैवीय आपदा आ सकती है। इसी कारणवश अब तक इस दरवाजे को खोलने का प्रयास नहीं किया गया।
निष्कर्ष
हमने अपने इस आर्टिकल श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर, जाने इसकी विशेषता और रहस्य में इस मंदिर से संबंधित सारी जानकारिया बतायीं हैं। हम आशा करते हैं कि, आपने हमारा यह आर्टिकल शुरू लेकर अंत तक पूरा पढ़ा होगा। और आपको हमारा यह आर्टिकल काफी पसंद भी आया होगा। अगर आप भी श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर में दर्शन करने के लिए जाना चाहते हैं, तो हमारा यह आर्टिकल आपके लिए काफी फायदेमंद साबित हो सकता है।