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Khudiram Bose Biography in Hindi: इस पोस्ट में खुदीराम बोस के जीवन के बारे में बताया गया है। खुदीराम बोसे ऐसे क्रांतिकारियों में एक थे जो अंग्रेजी हुकूमत से कभी नहीं डरे। खुदीराम बोस को 19 वर्ष की उम्र में ही फांसी पर लटका दिया गया। आगे आप Khudiram Bose Biography in Hindi को विस्तार में पढ़ेंगे।
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम सेनानी खुदीराम बोस एक सच्चे देश भक्त थे। खुदीराम बोस की शहादत ने पुरे देश में क्रांति की लहर उत्पन्न कर दी थी। खुदीराम बोस देश की आजादी के लिये केवल 19 वर्ष की आयु में फांसी पर चढ़ गए। खुदीराम बोस अपने देश के लिए फांसी पर चढ़ने वाले सबसे कम उम्र के ज्वलंत तथा युवा क्रन्तिकारी देशभक्त थे।
इस क्रांतिकारी देशभक्त की शहादत में पूरे देश में देशभक्त की लहर पैदा हो गयी। इनके सम्मान में भावपूर्ण गीत लिखे गए। जो बंगाल में लोकगीत के रूप में गाये जाते हैं। इनकी वीरता के सम्मान में इनको अमर करने के लिए गीतों की रचना की गयी एवं इनका बलिदान लोकगीतों के रूप में गाया जाने लगा।
खुदीराम बोस का प्रारंभिक जीवन
खुदीराम बोस का जन्म 3 दिसम्बर 1889 को पश्चिम बंगाल के मोदिनीपुर जिले के बहुवैनी में हुआ था। इनके पिता त्रैलोक्यनाथ बसु शहर के तहसीलदार थे। और माँ लक्ष्मीप्रिया देवी एक धर्मनिष्ठा महिला थीं। इनका पालन पोषण काफी लाड-प्यार से हुआ था।
खुदीराम के पिता त्रैलोक्यनाथ इनको ब्रिटिश हुकूमत में ऊंचे पद पर देखना चाहते थे। परन्तु इसी दौरान उनकी पत्नी की गंभीर बीमारी की वजह से मृत्यु हो गयी। पत्नी के आकस्मिक देहांत के बाद त्रैलोक्यनाथ ने बच्चों के पालन-पोषण को ध्यान में रखकर दूसरी शादी कर ली।
परन्तु सौतेली माँ खुदीराम को पसंद नहीं करती थी। इसलिए इनका पालन-पोषण इनकी बड़ी बहन ने किया। उनके मन में देशभक्ति की भावना इतनी अधिक थी कि, इन्होने स्कूल के समय से ही राजनैतिक गतिविधियों में शामिल होना शुरू कर दिया। वह भारत माता को अंग्रेजों की दासता से मुक्त कराने के लिए क्रन्तिकारी गतिविधियों में शामिल हो गए।
सन 1902 एवं 1903 के दौरान अरविंदो घोष एवं भगिनी निवेदिता ने मेदिनीपुर में काफी जनसभाएं कीं। एवं क्रांतिकारी समूहों के साथ भी गोपनीय बैठकें आयोजित कीं। अपने शहर में खुदीराम भी उस युवा वर्ग में शामिल थे। जो अंग्रेजी हुकूमत को ध्वस्त करने के लिए आंदोलन में शामिल होना चाहता था।
खुदीराम के मन में देश प्रेम इतना अधिक था कि, उन्होंने 9 वीं क्लास के बाद पढ़ाई छोड़ दी। एवं देश की आजादी में कूद गए। खुदीराम अंग्रेजी समाजीवाद के विरुद्ध होने वाले जैसे जुलूसों में शामिल होते थे. एवं नारे लगाते थे।
खुदीराम बोस जीवन परिचय संक्षिप्त
जन्म तिथि | 3 दिसम्बर 1889 |
जन्म स्थान | मिदनापुर जिले के बहुवैनी नामक गाँव |
माता का नाम | लक्ष्मीप्रिया देवी |
पिता का नाम | बाबू त्रैलोक्यनाथ बोस |
उपलब्धि | अंग्रजो के खिलाफ बुलंद आवाज |
पेशा | आंदोलनकारी |
पढाई | 9वी क्लास |
मृत्यु का कारण | फांसी |
शहीद की तिथि | 11 अगस्त 1908 |
खुदीराम बोस जयंती | 11 अगस्त |
खुदीराम बोस बने क्रांतिकारी
अंग्रेजों ने 20वीं सदी के प्रारम्भ में स्वाधीनता आंदोलन की प्रगति को देखते हुए बंगाल विभाजन की चाल चली। जिसका काफी विरोध हुआ। इसी दौरान सन 1905 में बंगाल विभाजन के बाद खुदीराम बोस स्वाधीनता आंदोलन में शामिल हो गए।
उन्होंने केवल 16 वर्ष की आयु में पुलिस स्टेशन के पास एक ब्रिटिश अधिकारी की गाड़ी में ब्रिटिश राज के बीच डर फैलाने के लिए बम रख दिया। उन्होंने सत्येन बोस के नेतृत्व में अपना क्रांतिकारी जीवन आरम्भ किया था। वर्ष 1906 में खुदीराम को 2 बार पुलिस ने पकड़ा।
बोस सोनार बंगला नामक एक इश्तेहार बाटते हुए 28 फरवरी 1906 को पकडे गए। परन्तु पुलिस को चकमा देकर भागने में सफल रहे। इस प्रकरण में उनके विरुद्ध राजद्रोह का आरोप लगा। और उन पर मुकदमा चला। परन्तु सबूतों के आभाव में खुदीराम बोस निर्दोष छूट गए। 16 मई को उन्हें पुलिस ने दूसरी बार गिरफ्तार किया, पर कम आयु का होने के कारण उन्हें चेतावनी देकर छोड़ दिया गया।
खुदीराम बोस ने मारायणगढ़ नामक रेलवे स्टेशन पर 6 दिसंबर 1907 को बंगाल के गवर्नर की स्पेशल ट्रेन पर हमला किया। परन्तु गर्वनर बच गए। उन्होंने सन 1908 में पैम्फायलट फुलर एवं वाटसन नामक 2 ब्रिटिश अफसरों पर बम से हमला किया। परन्तु वह भाग्यवश बच गए।
डाकघर लूटकांड
एक दिन बाबू सत्येन बोस ने खुदीराम बोस को बताया कि, समिति का कोष खाली हो गया है। एवं समिति को आगे की गतिविधियों को संचालित करने के लिए धन की काफी आवश्यकता है। यह सुनकर खुदीराम चिंतित हो गए। वे धन की आवश्यकता की पूर्ति के लिए विचार करने लगे।
एक दिन बिना किसी को बताये खुदीराम अपनी बहन अनुरूप देवी के पास हाटगछिया चले गए। वहां रहकर उन्होंने इस बात की जानकारी प्राप्त की कि, हाटगछिया के डाकघर का कोष कब निकाला जाता है। और उसे लेकर कौन किस रास्ते से जाता है।
खुदीराम बोस ने सारी जानकारी कर लेने के बाद एक दिन डाकघर का कोष ले जाने वाले अंग्रेज को अपने एक साथी की सहायता से रास्ते में ही दबोच लिया। और कोष के धन को लेकर भाग गए। इस तरह समिति की धन से सम्बंधित परेशानी काफी हद तक ख़त्म हो गयी। खुदीराम के अदम्य साहस से सत्येन बोस काफी प्रभावित हुए थे।
न्यायाधीश किंग्स फोर्ड को मारने की साजिश
लाखों लोग बंगाल विभाजन के विरोध में सड़कों पर उतरे। अनेक भारतियों को उस समय कलकत्ता के मजिस्ट्रेट किंग्स फोर्ड ने भयानक दंड दिया था। अन्य मामलों में भी उसने क्रांतिकारियों को काफी दण्डित किया था। इसके परिणाम स्वरुप किंग्स फोर्ड को पदोन्नति देकर मुजफ्फरपुर में सत्र न्यायाधीश के पद पर नियुक्त किया गया।
युगांतर समिति की एक बैठक में किंग्स फोर्ड को मारने का निश्चय किया गया। इस काम के लिए खुदीराम एवं प्रफुल्ल कुमार चाकी को चयनित किया गया। खुदीराम को एक बम एवं एक पिस्तौल दी गयी। प्रफुल्ल कुमार चाकी को भी एक पिस्तौल दी गयी। इसके बाद मुजफ्फरपुर आने के बाद सबसे पहले इन दोनों ने किंग्स फोर्ड के बंगले की निगरानी की। उन्होंने उसकी बग्घी तथा उसके घोड़े का रंग देख लिया। खुदीराम तो उसके कार्यालय जाकर उसको भी देख आये।
खुदीराम और चाकी किंग्स फोर्ड के बंगले के बाहर 30 अप्रैल सन 1908 को उसका इन्तजार करने लगे। खुदीराम ने अंधेरे में ही आगे वाली बग्घी पर बम फेका। पर उस बग्घी में किंग्स फोर्ड नहीं थे। बल्कि 2 यूरोपियन महिलाएं थीं, जिनकी मृत्यु हो गयी।
अफरा-तफरी के वे दोनों नंगे पाँव भागे, व् भागकर खुदीराम वैनी स्टेशन पहुंचे। और वहां एक चाय वाले से पानी माँगा। पर वहां उपस्थित पुलिस वालों को उन पर शक हो गया। एवं काफी मेहनत के बाद दोनों ने खुदीराम को गिरफ्तार कर लिया। उन्हें 1 मई को स्टेशन से मुजफ्फरपुर लाया गया।
दूसरी तरफ प्रफुल्ल चाकी भी भाग-भाग कर भूख-प्यास से व्याकुल हो गए। 1 मई को ही त्रिगुनाचरण नामक एक आदमी जो ब्रिटिश हुकूमत में कार्यरत था, ने उनकी सहायता की। एवं रात को ट्रैन में बैठाया। लेकिन रेल में सफर के दौरान ब्रिटिश पुलिस के एक सब इन्स्पेक्टर को उन पर शक हो गया।
मुजफ्फरपुर पुलिस को इस बात की जानकारी दे दी। जब चाकी हावड़ा के लिए ट्रैन बदलने के लिए मोकामा घाट स्टेशन पर उतरे। तब वहां पुलिस पहले से ही उपस्थित थी। चाकी ने अंग्रेजों के हाथों मरने के बजाय खुद को गोली मार ली और शहीद हो गए।
हँसते-हँसते चढ़ गए फांसी पर
खुशीराम की गिरफ़्तारी के बाद मुकदमा चलाया गया। एवं फांसी की सजा सुनाई गयी। 11 अगस्त सन 1908 को उन्हें फांसी दी गयी। खुदीराम बोस इतने निडर थे कि, हाथ में गीता लेकर हँसते-हँसते वन्देमातरम बोलकर फांसी पर चढ़ गए। उस समय उनकी उम्र 19 साल थी।
खुदीराम की लोकप्रियता
उनकी निडरता, वीरता एवं शहादत ने उनको इतना लोकप्रिय कर दिया कि, उनकी फांसी के बाद विद्यार्थियों एवं अन्य लोगों ने शोक मनाया, एवं काफी दिन तक स्कूल-कालेज बंद रहे। उनकी लोकप्रियता के कारण जुलाहे एक विशेष प्रकार की धोती बनाने लगे। एवं बंगाल के राष्ट्रवादियों एवं क्रांतिकारियों के लिए वह अनुकरणीय हो गए।
उन दिनों नौजवानों में एक ऐसी धोती का प्रचलन हो गया था, जिसके किनारे पर खुदीराम लिखा होता था। उनके साहसिक योगदान को अमर करने के लिए गीत रचे गए। एवं उनका बलिदान लोकगीत के रूप में मुखरित हुआ। उनके सम्मान में भावपूर्ण गीत लिखे गए। जिन्हें बंगाल के लोक गायक आज भी गाते हैं।
खुदीराम बोस जयंती
खुदीराम बोस का जन्म 3 दिसंबर 1889 को पश्चिम बंगाल में हुआ था। खुदीराम को पकड़ कर मुज़फ्फरपुर जेल में डाल दिया गया। जब मजिस्ट्रेट ने फांसी पर लटकाने का आदेश सुनाया था तब खुदीराम बोस बिलकुल भी डरे नहीं। अन्तः में खुदीराम बोस को 11 अगस्त 1908 को उन्हें मुजफ्फरपुर जेल में फांसी दे दी गई।
जब खुदीराम शहीद हुए थे उसके बाद सभी विद्यार्थियों और लोगों ने कई दिनों तक शोक मनाया था। कई दिन तक स्कूल, कॉलेज सभी बन्द रहे और नौजवान ऐसी धोती पहनने लगे जिनकी किनारो पर खुदीराम बोस लिखा होता था। तभी से हर वर्ष 11 अगस्त के दिन खुदीराम बोस जयंती के रूप में मनाया जाता है।
खुदीराम बोस का नारा
वर्ष 1905 में बंगाल का विभाजन जो गया था। उसके बाद बाद खुदीराम बोस भारत माता को आजादी दिलाने के लिए आंदोलन शुरू कर दिया। खुदीराम बोस ने सत्येन बोस के देख-रेख क्रांतिकारी जीवन शुरू कर दिया। जब खुदीराम बोस ने गोरों के खिलाफ आंदोलन शुरू किया तब उनकी उम्र बहुत ही कम होने के बावजूत वो हर जुलूस में भाग लेते थे। खुदीराम बोस “वन्दे मातरम ” का नारा लगाते थे।