Kalidas Biography in Hindi: महाकवि काली दास का जीवन परिचय

Kalidas Biography in Hindi: कालिदास एक महान कवी थे। इस पोस्ट में आप काली दास का जीवन परिचय के बारे में विस्तार से पढ़ेंगे।  कालिदास एक महान कवि और नाटककार ही नहीं बल्कि वे संस्कृत भाषा के विद्दान भी माने जाते थे। कालिदास भारत के श्रेष्ठ कवियों में से एक थे।

महाकवि कालिदास भारतीय संस्कृति के एक महान कवि, विद्वान एवं नाटककार थे। कालिदास का जन्म भारत में मध्य प्रदेश के उज्जैन शहर के पास एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। इनके जन्म के सम्बन्ध में कुछ ज्यादा जानकारी नहीं है। कालिदास कविताओं, नाटकों एवं अन्य साहित्यिक रचनाओं के लिए विख्यात हैं।

कालिदास को उनकी रचनाओं के लिए विभिन्न पुरस्कारों से सम्मानित भी किया गया है। जिसमें संस्कृत साहित्य का सर्वोच्च पुरस्कार, साहित्य निर्माता एवं काव्य नाट्य शामिल हैं। कालिदास को उनकी महान रचनाओं के कारण राजा विक्रमादित्य के राजदरबार में 9 रत्नों में शामिल किया गया था। महाकवि कालिदास की रचनाऐं संस्कृत साहित्य के उन सर्वोच्च लेखकों मे से एक हैं, जिनके काव्य एवं नाटक आज भी विश्व के विभिन्न हिस्सों में अपनाये जाते हैं।

कालिदास ने रघुवंशम, मेघदूत, मालविकाग्निमित्रम, विक्रमौर्वशीय, कुमारसम्भवम, अभिज्ञान शाकुंतलम जैसी अनेक प्रसिद्ध रचनाएँ लिखी हैं। इनका संस्कृत और संस्कृत साहित्य के समाज में अतुलनीय योगदान रहा है। और इन्हें भारतीय साहित्य के महान कवि एवं विद्वान के रूप में जाना जाता है।

काली दास जीवन परिचय संक्षिप्त

जन्म 150 ईपु० से लेकर 400 ईo के बीच
जन्म स्थान उज्जैन
माता का नाम हुलसी
पिता का नाम आत्माराम दूबे
पत्नी का नाम विद्योत्तमा
मूल नामनीलकंदन
पेशा कवि, नाटककार
प्रारंभिक शिक्षा अनपढ़
सर्वश्रेष्ठ रचना मेघदूतम्
मित्यु ठोस जानकारी नहीं
kalidas

कालिदास का जन्म

कालिदास के जन्म के सम्बन्ध में ज्यादा जानकारी उपलब्ध नहीं है। परन्तु ऐसा कहा जाता है कि, कालिदास का जन्म भारत में मध्य प्रदेश के उज्जैन शहर के निकट एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। कालिदास का जन्म 150 ई.पू. से लेकर 400 ई.पू. के बीच माना जाता है।

कुछ विद्वानों का मत है कि, इनका जन्म गुप्त काल के समय हुआ था। क्योंकि कालिदास के नाटक “मालविकाग्निमित्र” में अग्नि मित्र का वर्णन मिलता है। जो 170 ई.पू. का शासक था। कालिदास का एक वर्णन वानभट्ट की “हर्षचरितम” में मिलता है। जो छठी शताब्दी की रचना है। इसलिए इन सभी साक्ष्य को मानकर कालिदास के जन्म का समय पहली शताब्दी ई.पू. से तीसरी शताब्दी के बीच माना जाता है।

महाकवि कालिदास के बारे में कहा जाता है कि, वे बचपन में अनपढ़ थे, और उन्हें किसी चीज की समझ नहीं थी। परन्तु बाद में वे साहित्य के विद्वान हो गए। एवं इन्हें हिंदी एवं साहित्य में महान कवि का दर्जा मिला।

कालिदास का विवाह

महाकवि कालिदास का विवाह राजकुमारी विद्योत्तमा से संयोगवश हुआ था। ऐसा कहा जाता है कि, राजकुमारी विद्योत्तमा को अपनी बुद्धि एवं ज्ञान पर बहुत घमंड था। राजकुमारी विद्योत्तमा ने प्रतिज्ञा की थी कि, जो भी उन्हें शास्त्रार्थ में पराजित कर देगा वे उसी से विवाह करेंगी। विद्योत्तमा से विवाह की इच्छा रखने वाले काफी सारे विद्वान विद्योत्तमा से शास्त्रार्थ में हार गए। इसलिए कुछ विद्वानों ने मिलकर अपने हार का बदला लेने के लिए कालिदास का शास्त्रार्थ वियोत्तमा से कराया।

कालिदास एक मुर्ख व्यक्ति थे। क्योंकि जब समस्त विद्वान मिलकर एक अज्ञानी मुर्ख व्यक्ति की तलाश कर रहे थे। तब उन्हें कालिदास दिखाई दिए, जो एक वृक्ष की जिस डाल पर बैठे थे, उसी को काट रहे थे। तब सभी ने समझा कि, इससे बड़ा मुर्ख इस दुनिया में दूसरा नहीं मिलेगा।

तब कालिदास को विद्योत्तमा के पास ले गए। और कहे कि, कालिदास हम लोगों के गुरु हैं, जो आज मौन व्रत किये हुए हैं। आप इनसे मौन शब्दावली सांकेतिक भाषा में शास्त्रार्थ कर सकती हैं। जब विद्योत्तमा कालिदास से मौन शब्दावली में इशारों से प्रश्न पूंछती तो, उसका जवाब भी कालिदास सांकेतिक भाषा में देते। जिसे वहां उपस्थित सारे विद्वान उस प्रश्न के जवाब को सही तर्क देते हुए विद्योत्तमा को समझा देते।

विद्योत्तमा ने कालिदास से एक प्रश्न सांकेतिक भाषा में पूंछा, प्रश्न के रूप में विद्योत्तमा ने खाली हाथ दिखाया। जिसे कालिदास ने समझा की वह मुझे थप्पड़ मारने के लिए दिखा रही है। इस प्रश्न के जवाब में कालिदास ने मुट्ठी को बंद करके घुसा दिखाया। जिसे विद्योत्तमा ने समझा कि, कालिदास ने इशारे में बताया है कि, पांचों इन्द्रियां अलग-अलग हैं। परन्तु सभी मन के द्वारा संचालित होती हैं। इस जवाब से प्रभावित होकर विद्योत्तमा कालिदास से विवाह करने को राजी हो गयी, और विवाह कर लिया।

विद्योत्तमा से बेज्जत होने के पश्चात कालिदास बने महान कवि

कुछ दिनों के बाद राजकुमारी विद्योत्तमा को जब कालीदास की मंदबुद्धि की जानकारी हुई, तो वे अत्यंत दुखी हुई। और कालिदास को बेज्जत कर यह कह कर घर से निकल दिया कि, सच्चे पंडित बने बिना घर वापस मत आना। कालिदास ने पत्नी से बेज्जत होने के पश्चात यह निश्चय किया की जब तक वह एक ज्ञानी पंडित नहीं बन जाते, तब तक वह घर वापस नहीं आएंगे।

इसी संकल्प के साथ उन्होंने घर त्याग दिया। एवं माँ काली के उपासक बन गए। एवं माँ काली की कृपा से एक परम ज्ञानी पंडित एवं साहित्य के विद्वान बन गए। और इसके बाद वह घर वापस आ गए। उन्होंने घर पहुंचकर जब पत्नी को आवाज लगाई तो, वियोत्तमा को आवाज सुनकर यह आभास हो गया कि, दरवाजे पर कोई परम ज्ञानी आया है।

इस प्रकार पत्नी से बेज्जत होकर होने के बाद उन्हें परम ज्ञान की प्राप्ति हुई। और वे एक महान कवि बन गए। और उनकी तुलना दुनिया के सर्वश्रेष्ठ कवियों में की जाने लगी। यही नहीं संस्कृत साहित्य में अभी तक कालिदास जैसा कोई दूसरा कवि पैदा नहीं हुआ है।

महाकवि कालिदास के सम्बन्ध में कुछ विशेष जानकारियां

विश्वविख्यात महाकवि कालिदास संस्कृत साहित्य के एक महान कवि के रूप में जाने जाते हैं। जिनके रचनाओं ने संस्कृत साहित्य को काफी बुलंदियों तक पहुंचाया है। इनके जीवन एवं रचनाओं से सम्बंधित कुछ विशेष जानकारियां इस प्रकार हैं।

  • ऐसा माना जाता है कि, कालिदास का जन्म भारत में मध्य प्रदेश के उज्जैन में हुआ था।
  • इन्होने संस्कृत और पाली भाषा में शिक्षा प्राप्त की थी। एवं इन्हें वेद, पुराण, संस्कृत व्याकरण एवं उपनिषदों का विशेष ज्ञान था।
  • इन्हें समुद्र तट पर स्थित विदर्भ राज्य के राजा विक्रमादित्य के दरबार में सम्राट कवि के रूप में नियुक्त किया गया था।
  • कालिदास अपनी रचनाओं में संस्कृति, धर्म एवं समाज से सम्बंधित अनेक विषयों पर लिखते थे।
  • कालिदास ने काव्य, नाटक एवं गद्य लेखन के अतिरिक्त रति मनोहरता एवं कामदेव की कामुकता के विषय पर भी लिखा था।
  • कालिदास ने अपनी विश्व प्रसिद्ध रचना अभिज्ञान शाकुंतलम के अतिरिक्त भी अनेक काव्य, नाटक एवं गद्य लेखन लिखा था।

महाकवि कालिदास की रचनाएँ

महाकवि कालिदास की कुछ प्रमुख रचनाएं इस प्रकार है।

अभिज्ञान शाकुंतलम

महाकवि कालिदास द्वारा रचित अभिज्ञान शाकुंतलम एक महान नाटक है। इस नाटक की कहानी अप्सरा मेनका की पुत्री शकुंतला एवं ऋषि विश्वामित्र के प्रेम पर आधारित है। यह नाटक संस्कृत भाषा में लिखा गया है। एवं संस्कृत साहित्य के महत्वपूर्ण रचनाओं में से एक है। इस नाटक में कालिदास ने प्रेम, सौंदर्य, विश्वास, धर्म और सम्बन्ध जैसे विषयों को सुंदरता से व्यक्त किया है।

मालविकाग्निमित्र

मालविकाग्निमित्र भारतीय संस्कृति का एक महत्वपूर्ण नाटक है। जिसकी रचना महाकवि कालिदास ने की है। इस नाटक को कालिदास के प्रसिद्ध महाकाव्य अभिज्ञान शाकुंतलम के बाद लिखा गया था। और इसके अनुयायी विश्व भर में हैं। इस नाटक में संगीत, नृत्य एवं रंगमंच के अनेक पहलु हैं।

विक्रमौर्वशीय

विक्रमौर्वशीय नाटक के रचयिता भी महाकवि कालिदास हैं। विक्रमौर्वशीय नाटक में 5 अध्याय हैं। इसमें संगीत, नृत्य एवं रंगमंच के प्रयोग के साथ सुन्दर वर्णन शामिल है। यह नाटक भारतीय संस्कृति की महानतम नाट्य साहित्यक रचनाओं में से एक है।

महाकाव्य-(रघुवंश, कुमार संभव)

महाकाव्य एक ऐसी कविता है। जो एक महत्वपूर्ण विषय को गंभीरता से व्यक्त करती है। इसमें वाक्य रचना, छंद, ताल एवं शब्दों के चयन आदि तत्वों पर विशेष ध्यान दिया जाता है। महाकवि कालिदास की रचनाओं में “रघुवंश” एवं “कुमार संभव” 2 महाकाव्य हैं।

खंडकाव्य-(मेघदूत, ऋतूसंहार)

खंड काव्य एक ऐसी कविता है। जो अनेक कविताओं से मिलकर बनी है। महाकवि कालिदास ने अपने 2 खंड काव्यों मेघदूत एवं ऋतूसंहार के द्वारा अपनी कला का ज्ञान दुनिया में दिखाया है। इन दोनों खंड काव्यों ने कालिदास की कला को समझने के लिए एक विशेष स्थान रखा है।

कालिदास की अन्य रचनाएं

कालिदास एक महान कवि एवं नाटककार व् विद्वान थे। कालिदास द्वारा लिखी कुछ अन्य रचनाएं इस प्रकार हैं।

  • कर्पूरमंजरी।
  • ज्योति विद्याभरणम।
  • पुष्प बाण विलासम।
  • श्रुतबोधम।
  • ज्योतिर्विद्याभरणं।
  • सेतुकाव्यम।
  • श्रृंगार रसाशतम।
  • श्रृंगार तिलकम।
  • श्यामा दंडकम।
  • विक्रमौर्वशीय।