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चौहान वंश में जन्मे पृथ्वीराज चौहान एक महान योद्धा होने के साथ ही आखरी हिन्दू शासक भी थे। लोग इन्हें भरतेश्वर, पृथ्वीराज तृतीय,हिन्दू सम्राट,सपादक्षेश्वर, राम पिथौरा के नाम से भी जानते हैं। ये क्षत्रिय थे। इनका जन्म सन 1166 में अजमेर, राजस्थान में हुआ था। माता पिता के विवाह के 12 साल बाद इनका जन्म हुआ था।
इनके पिता का नाम सोमेश्वर एवं माता का नाम कपूरी देवी था। इनका एक छोटा भाई जिसका नाम हरिराज था। एवं एक छोटी बहन थी, जिसका नाम पृथा था। इनकी 13 पत्नियाँ थी, जिनके नाम जम्भावती पडिहारी, पंवारी इच्छनी, दाहिया, जालंधरी, गूजरी, बडगुजरी, यादवी पद्मावती, यादवी शशिव्रता, कछवाही, पुडीरनी, शशिव्रता, इन्द्रावती और संयोगिता गाहडवाल है।
पृथ्वीराज चौहान उत्तर भारत में 12 वीं सदी के समय में अजमेर {अजय मेरु } और दिल्ली के शासक थे। इन्होने 5 वर्ष की उम्र में विग्रह राज द्वारा स्थापित “सरस्वती कष्टा भरण विद्यापीठ” से शिक्षा प्राप्त की थी। उन्होंने अपने गुरु श्री रामजी से शिक्षा के अलावा युद्ध कला एवं शस्त्र विधा भी सीखी थी।
वह 6 भाषाओं में निपुण थे। जैसे -संस्कृत, प्राकृत, कागधि, पैशाची, शौरसेनी, और अपभ्रंश भाषा। इसके अतिरिक्त उन्हें मीमांसा, वेदांत, गणित, पुराण, इतिहास, सैन्य विज्ञान, और चिकित्सा शास्त्र का भी ज्ञान था। पृथ्वीराज ने महज 13 साल की आयु में अपने राज्य अजमेर के राजगढ़ का राजपाठ संभाला था।
महान कवी एवं उनके मित्र चंदबरदाई की काव्य रचना ”पृथ्वी राज रासो“ में बताया गया है कि, पृथ्वी राज चौहान शब्द में ही बाण चलाने अश्व व् हाथी नियंत्रण विद्या में भी निपुण थे। पृथ्वीराज की एक कहानी प्रचलित है कि, वह इतने ताकतवर थे कि, एक बार बिना किसी हथियार के उन्होंने शेर को मार डाला था।
पृथ्वीराज की सेना
पृथ्वीराज चौहान की काफी विशालकाय सेना थी। इनकी सेना में 3 लाख सैनिक और 3 सौ हाथी थे। बताया जाता है कि, उनकी सेना बहुत ही पराक्रमी व् संगठित थी। इस वजह से सेना के बल पर उन्होंने अनेकों राजाओं को परास्त कर युद्ध में विजय प्राप्त की थी। और अपने राज्य का विस्तार किया था।
परन्तु आखिर में कुछ घुडसवारों की कमी एवं जयचन्द्र की गद्दारी और अन्य राजपूत राजाओं के असहयोग के कारण वे मोहम्मद गौरी से द्वितीय युद्ध हार गये थे ।

पृथ्वीराज चौहान का दिल्ली की गद्दी पर राज्याभिषेक
पृथ्वीराज चौहान की माता व् अजमेर की महारानी कपूरी देवी अपने पिता अंगपाल की एकमात्र संतान थीं। इसलिए कपूरी देवी के पिता के समक्ष यह बड़ी समस्या थी कि, उनकी मृत्यु के पश्चात उनका राज्य कौन संभालेगा। उन्होंने अपनी पुत्री एवं दामाद के समक्ष अपने पोते को अपना उत्तराधिकारी बनाने की इच्छा व्यक्त की।
और दोनों की सहमती प्राप्त होने के पश्चात युवराज पृथ्वीराज को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया। वर्ष 1166 में महाराजा अंगपाल की मृत्यु के पश्चात पृथ्वी राज चौहान को दिल्ली का राजा नियुक्त किया गया। और उन्हें दिल्ली का कार्य – भार सौपा गया। दिल्ली की गद्दी संभालने के बाद पृथ्वीराज ने किला राय पिथौरागढ़ का निर्माण कराया था।
पृथ्वीराज चौहान के मित्र
पृथ्वीराज चौहान एवं चंदबरदाई बचपन के मित्र थे। चंदबरदाई एक कवि व् लेखक थे। उन्होंने एक महान काव्य “पृथ्वीराज रासो” लिखा था। चंदबरदाई तोमर वंश के शासक अनंगपाल की बेटी के पुत्र थे।
पृथ्वीराज चौहान और कन्नौज की राजकुमारी संयोगिता के विवाह की कहानी
पृथ्वीराज चौहान और उनकी रानी संयोगिता का प्रेम आज भी राजस्थान में प्रसिद्द है। दोनों एक दुसरे से मिले बिना केवल चित्र देख कर एक दुसरे के प्यार में मोहित हो चुके थे। वहीँ संयोगिता के पिता जयचंद्र पृथ्वीराज के साथ इर्ष्या रखते थे। इस वजह से वह अपनी पुत्री का विवाह पृथ्वीराज चौहान के साथ करने की दूर दूर तक सोच भी नहीं सकते थे।
जयचंद्र हमेशा पृथ्वीराज को नीचा दिखाने का प्रयास किया करता था। यह मौका उन्हें अपने पुत्री के स्वयंवर में मिला, राजा जयचंद्र ने अपनी पुत्री संयोगिता का स्वयंवर आयोजित किया। इसके लिए उन्होंने पुरे देश के राजाओं को आमंत्रित किया परन्तु पृथ्वीराज को आमंत्रित नहीं किया।
पृथ्वीराज को नीचा दिखाने के उद्देश्य से उन्होंने पृथ्वीराज की मूर्ति द्वारपाल के स्थान पर रख दी। परन्तु इसी स्वयंवर में पृथ्वीराज ने संयोगिता की इच्छा से उनका अपहरण कर उन्हें भगाकर अपने राज्य ले गये। और दिल्ली आकर दोनों का पूरी विधि विधान के साथ विवाह संपन्न हुआ। जिसके पश्चात राजा जयचंद और पृथ्वीराज के बीच दुश्मनी और बढ़ गयी।
पृथ्वीराज चौहान का मोहम्मद गौरी से प्रथम युद्ध
पृथ्वीराज चौहान अपने राज्य के विस्तार को लेकर हमेशा चौकन्ने रहते थे। और इस बार उन्होंने अपने विस्तार के लिए पंजाब को चुना। इस समय मुहम्मद शहाबुद्दीन गौरी का सम्पूर्ण पंजाब पर शासन था। वहीं के ही भटिंडा से अपने राज्य पर शासन करता था।
गौरी से युद्ध किये बिना पंजाब राज्य हासिल करना असम्भव था। तो इसी उद्देश्य से पृथ्वीराज ने अपनी विशाल सेना के साथ गौरी पर आक्रमण कर दिया। अपने इस युद्ध में सर्वप्रथम हासी, सरस्वती, और सरहिंद पर अपना अधिकार किया। परन्तु इसी दौरान अनहिल वाडा में विद्रोह हुआ। और पृथ्वीराज को वहां जाना पड़ा। और उनकी सेना ने अपना नियंत्रण खो दिया। जिसके फलस्वरूप सरहिंद का किला उनके हाथ से निकल गया।
अब जब पृथ्वीराज अनहिल वाडा से वापस आये तो, उन्होंने दुश्मनो के दांत खट्टे कर दिए। युद्ध में केवल वही सैनिक बचे जो मैदान से भाग गये। इस युद्ध में मुहम्मद गौरी भी अधमरा हो गया। परन्तु उनके एक सैनिक ने उनकी हालत को देखते हुए उन्हें घोड़े पर डालकर अपने महल ले गया, और उनका उपचार कराया।
इस तरह युद्ध परिणामहीन रहा। यह युद्ध सरहिन्द किले के पास तराइन नामक स्थान पर हुआ। इसलिए इसको तराइन का युद्ध भी कहते हैं। इस युद्ध में पृथ्वीराज ने लगभग 7 करोड़ की संपत्ति एकत्र की, जिसे उसने अपने सैनिकों में बाँट दिया।
पृथ्वीराज चौहान का द्वितीय युद्ध
राजा जयचंद्र के मन में अपनी पुत्री संयोगिता के अपहरण के पश्चात पृथ्वी राज के प्रति दुश्मनी बढती चली गयी। और उसने पृथ्वी राज को अपना दुश्मन मान लिया। वो पृथ्वीराज के प्रति अन्य राजपूत राजाओं को भो भड़काने लगा। जब उसे पृथ्वीराज के साथ गौरी के युद्ध की जानकारी हुई, तो वह गौरी के साथ खड़ा हो गया।
दोनों ने मिलकर 2 वर्ष पश्चात सन 1192 में पुनः पृथ्वीराज पर आक्रमण किया। यह युद्ध भी तराइन के मैदान में हुआ। इस युद्ध के दौरान जब पृथ्वीराज के मित्र चंदबरदाई ने अन्य राजपूत राजाओं से मदद मांगी, तो संयोगिता के स्वयंवर में हुई घटना के कारण उन्होंने भी सहायता करने से इनकार कर दिया।
ऐसे में पृथ्वीराज अकेले पड़ गये। और उन्होंने अपने 3 लाख सैनिकों के द्वारा गौरी की सेना का सामना किया। चुकि गौरी की सेना में अच्छे घुड़सवार थे। जिसकी सहायता से उन्होंने पृथ्वीराज की सेना को चारो तरफ से घेर लिया। ऐसे में वे न आगे बढ़ पाए न पीछे हट पाए। और जयचन्द की गद्दार सेना ने पृथ्वीराज की सेना का संहार किया। और पृथ्वीराज की हार हुई।
युद्ध के पश्चात पृथ्वीराज और उनके मित्र चदबरदाई को बंदी बना लिया गया। राजा जयचंद को भी उसकी गद्दारी का परिणाम मिला, और उसे मार डाला गया। अब पुरे पंजाब, दिल्ली, अजमेर और कन्नौज में मोहम्मद गौरी का शासन था। इसके बाद से कोई भी राजपूत शासक भारत में अपना राज लाकर अपनी वीरता साबित नहीं कर पाया ।
पृथ्वीराज चौहान की मृत्यु
मोहम्मद गौरी से युद्ध के पश्चात पृथ्वीराज को बंदी बनाकर उनके राज्य ले जाया गया। जहाँ पृथ्वीराज और चंदबर दाई दोनों को ही कैद कर लिया गया। मुहम्मद गौरी ने सजा के रूप में पृथ्वीराज की आखों को गर्म सलाखों से फोड़वा दिया। मुहम्मद गौरी ने चंदबरदाई से पृथ्वीराज की अंतिम इच्छा पूछने के लिए कहा।
क्योकि चंदबरदाई और पृथ्वीराज आपस में मित्र थे। और पृथ्वीराज शब्द भेदी बाण चलने में माहिर थे। मुहम्मद गौरी को इस बात की जानकारी दी गयी। जिसके पश्चात कला प्रदर्शन की उसने इजाजत दे दी। पृथ्वीराज को जहाँ पर अपनी कला का प्रदर्शन करना था, वहां पर गौरी भी उपस्थित था। पृथ्वी राज चौहान ने चंदबरदाई के साथ मिलकर मोहम्मद गौरी को मारने की योजना पहले ही तैयार कर ली थी। महफ़िल शुरू होने वाली थी।
तभी चंदबर दाई ने एक दोहा कहा “चार बांस चोबीस गज, अंगुल अष्ट प्रमाण, ता ऊपर सुल्तान है, मत चुके चौहान”। चंदबरदाई ने पृथ्वीराज चौहान को संकेत देने हेतु इस दोहे को पढ़ा था। इस दोहे को सुनने के पश्चात मुहम्मद गौरी ने “शाबास” कहा। वैसे ही अपनी आँखे खो चुके पृथ्वी राज ने मुहम्मद गौरी को अपने शब्द भादी बाण से मार दिया। वैसे सबसे दुःख की बात है कि, इसके पश्चात पृथ्वीराज और चंदबरदाई ने दुर्गति से बचने के लिए एक दुसरे को मार दिया। ऐसे पृथ्वीराज ने अपने अपमान का बदला ले लिया। पृथ्वीराज की मृत्यु का समाचार सुनकर संयोगिता ने भी अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली।